बँटवारा जब धन का किए ,
तब काहे ना तुम मन का किए ,
जब बांटा तुमने आंगन तब मां के आंचल के दो टुकड़े किए !! सिसका तो वह आंगन भी था,
पर शायद तुम सुन न सके|
तुलसी भी तो रोती थी सोचा कहां को जाऊंगी, आंगन तो अब बट जाएगा मैं कैसे रह पाऊंगी !! जब बाटी चूल्हे की रोटियां, मां के कलेजे को छलनी किए | चूल्हा भी तो बिलख पड़ा, लेकिन तुम उसकी सुन न सके|
द्वारे के वह नीम और जामुन आपस में बतियाते थे, यहां तो पड़ जाएगा गेड़ा, अब हम भी तो बंट जाएंगे | पिछवाड़े के वह आम और महुआ लिपट लिपट के रोए थे,
तुम जाओगे उधर को भैया, हम तो इधर को जाएंगे! कैसे देखेंगे एक दूजे को, अब हम तो मिल नहीं पाएंगे | वह बचपन का साथ वो अपनों का प्यार तुम भूल गए, साथ में खाया ,साथ में खेले लेकिन उस साथ को भूल गए!
बांट दिया घर आंगन सब, पर तुम मन को कैसे बांटोगे! ना खड़ी कर सकते हो दीवारें , ना कागज पर लिख पाओगे ,
मन भागेगा आगे-आगे एक दिन तुम भी पीछे आओगे ||
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मंगलवार, 30 जनवरी 2018
बँटवारा
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