एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ,
कभी चित्त मे उथल - पुथल सी ;
कभी है ये गम्भीर नदी सी ,
कभी है अल्हड यौवन जैसी ,
कभी है नट्खट बचपन जैसी ,
जितना टटोली उतना ही उलझी,
पर रही मै सदा निरुत्तर,
कैसी है ये जीवन विड्म्बना
अधरो पर ये कैसी विवेचना,
कह भी न पाऊ,रह भी न पाऊ ,
अन्तरमन मे द्व्दं मची है,
इसको कैसे शांत करु मै?
एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ........
SHILPI....
10 टिप्पणियां:
nice....
thanks
Very nice.. Keep on writing
Or poems r vry ausumn dee
Awadhesh Shalini Kamal Vimal
Keep on writing we r with u
Kamal
thanks 4 support....
thanks sir
thnks
Your poem are very very ausumn dee and Happy anniversary day
Awadhesh Shalini Kamal Vimal
Your poem are very very ausumn and Happy Anniversary Day Dee and Jija ji
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