रविवार, 18 जनवरी 2015

जीवन की कसमकस

एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ,
कभी चित्त मे उथल - पुथल सी ;
कभी है ये गम्भीर नदी सी ,
कभी है अल्हड यौवन जैसी ,
कभी है नट्खट बचपन जैसी ,
जितना टटोली उतना ही उलझी,
पर रही मै सदा निरुत्तर,
कैसी है ये जीवन विड्म्बना
अधरो पर ये कैसी विवेचना,
कह भी न पाऊ,रह भी न पाऊ ,
अन्तरमन मे द्व्दं मची है,
इसको कैसे शांत करु मै?
एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ........

                                  SHILPI....

10 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

nice....

dil ki awaz..dil se ने कहा…

thanks

Suman ने कहा…

Very nice.. Keep on writing

बेनामी ने कहा…

Or poems r vry ausumn dee
Awadhesh Shalini Kamal Vimal

बेनामी ने कहा…

Keep on writing we r with u
Kamal

dil ki awaz..dil se ने कहा…

thanks 4 support....

dil ki awaz..dil se ने कहा…

thanks sir

dil ki awaz..dil se ने कहा…

thnks

बेनामी ने कहा…

Your poem are very very ausumn dee and Happy anniversary day
Awadhesh Shalini Kamal Vimal

बेनामी ने कहा…

Your poem are very very ausumn and Happy Anniversary Day Dee and Jija ji