बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

मन का नाता

  मन से मन का नाता है अटूट,
 चाहे कोई पास रहे या रहे दूर
मन जान ही लेता है अपनो के मन  की हलचल को,
मन ढूढ ही लेता है गहराई मे छुपे उस दलदल को,
मन मे तो है बाते अनेक........
पर कह दू कैसे ओ बात एक, जो जोड दे अपनो से ओ नाता अटूट
जो नाते गये है बिन बात रूठ,
ओ रूठे है पर मन मे है मर्म, कैसे भरेगे ओ गहरे जख्म?
मन कहता है सब भूल जाओ,ओ कडवी यादे हमको ना सताओ,
जरा याद करो पहले के पल,जब साथ मे थे हम हर पल,
क्यो बिखर गया मन का नाता अटूट?
क्यो मन ही मन सब गये टूट?
आओ जोडे फिर मन की तारो को,
रोशन कर दे मन के उन अंधेरे गलियारे को............
फिर से जोड दे ओ नाता अटूट जो मन ही मन गया था टूट,
मन से मन का नाता है अटूट,
चाहे कोई पास रहे या रहे दूर...........
SHILPI...
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

nice one agan