बँटवारा जब धन का किए ,
तब काहे ना तुम मन का किए ,
जब बांटा तुमने आंगन तब मां के आंचल के दो टुकड़े किए !! सिसका तो वह आंगन भी था,
पर शायद तुम सुन न सके|
तुलसी भी तो रोती थी सोचा कहां को जाऊंगी, आंगन तो अब बट जाएगा मैं कैसे रह पाऊंगी !! जब बाटी चूल्हे की रोटियां, मां के कलेजे को छलनी किए | चूल्हा भी तो बिलख पड़ा, लेकिन तुम उसकी सुन न सके|
द्वारे के वह नीम और जामुन आपस में बतियाते थे, यहां तो पड़ जाएगा गेड़ा, अब हम भी तो बंट जाएंगे | पिछवाड़े के वह आम और महुआ लिपट लिपट के रोए थे,
तुम जाओगे उधर को भैया, हम तो इधर को जाएंगे! कैसे देखेंगे एक दूजे को, अब हम तो मिल नहीं पाएंगे | वह बचपन का साथ वो अपनों का प्यार तुम भूल गए, साथ में खाया ,साथ में खेले लेकिन उस साथ को भूल गए!
बांट दिया घर आंगन सब, पर तुम मन को कैसे बांटोगे! ना खड़ी कर सकते हो दीवारें , ना कागज पर लिख पाओगे ,
मन भागेगा आगे-आगे एक दिन तुम भी पीछे आओगे ||
मेरा परिचय मेरी कविता..
My blog is dedicate to My family,Poet,Hindi Lover..and my all friends Please Visit my blog www.silpiswati.blogspot.in www.facebook.com/silpisandy.gupta www.twitter.com/silpiswati
मंगलवार, 30 जनवरी 2018
बँटवारा
बुधवार, 28 दिसंबर 2016
राही
SHILPI BLOG |
राही क्यों थक गया है?
किस मोड़ पर खड़ा है?
आगे है तेरी मंजिल पीछे क्यू रुक गया है?
माना है दूर मंजिल ,कठिनाइयां बड़ी है, लेकिन क्या तुझमे हौसले की कमी है?
ना छोड़ तू दामन अपने हौसले का ,
बेबाक बढ़ता जा,
तू सिकंदर है अपने रास्ते का,
रास्ते के कांटे तू खुद निकाल लेना,
गर्दिशों में तारे फिर खुद चमक उठेंगे,
उबरेगा जब तू इन झंझावतो से,
देखेगा तेरी मंजिल तेरे करीब होगी,
मंजिल से राही की दूरी अब न होगी,
हासिल भी कुछ होगा,
अधूरी भी कुछ रहेगी,
ये जिंदगी का फलसफा चलता यूही रहेगा,
ना राही रुका है न जिंदगी रुकेगी।।
SHILPI..
रविवार, 24 मई 2015
मेरे सपने [Mere Sapane]
पता नही किन सपनो मे जागती हूँ आज- कल !
जैसे लगता है खुद मे ही कुछ टटोलती हूँ आज-कल!!
कुछ पाती हूँ , कुछ पाकर भी नही पाती !
कुछ पाने की चाह मे जागती हूँ आज-कल!!
पर क्या???
चाहती हूँ कुछ, समझ नही पाती!
उस सपने के पीछे भागती हूँ आज-कल!!
इरादा है जीवन मे कुछ तो कर पाऊंगी!
लक्ष्य के पीछे दूर तक जाऊंगी !!
हमारे अंदर ही कुछ होता है,पर उस तक पहुंच नही पाते!
सपने सच वही होते है,जिसमे आप सो नही पाते !!
बनाना चाहती हूं अपनी एक पहचान ..!
जिसमे सभी करे मुझपे अभिमान!!
लगता है मेरी मंजिल कर रही इंतजार !
खीचती है मुझे सपनो के पार!!
पता नही किन सपनो मे जागती हूँ आज- कल !
जैसे लगता है खुद मे ही कुछ टटोलती हूँ आज-कल!!
SHILPI.......
https://www.facebook.com/silpisandy.gupta
जैसे लगता है खुद मे ही कुछ टटोलती हूँ आज-कल!!
कुछ पाती हूँ , कुछ पाकर भी नही पाती !
कुछ पाने की चाह मे जागती हूँ आज-कल!!
पर क्या???
चाहती हूँ कुछ, समझ नही पाती!
उस सपने के पीछे भागती हूँ आज-कल!!
इरादा है जीवन मे कुछ तो कर पाऊंगी!
लक्ष्य के पीछे दूर तक जाऊंगी !!
हमारे अंदर ही कुछ होता है,पर उस तक पहुंच नही पाते!
सपने सच वही होते है,जिसमे आप सो नही पाते !!
बनाना चाहती हूं अपनी एक पहचान ..!
जिसमे सभी करे मुझपे अभिमान!!
लगता है मेरी मंजिल कर रही इंतजार !
खीचती है मुझे सपनो के पार!!
पता नही किन सपनो मे जागती हूँ आज- कल !
जैसे लगता है खुद मे ही कुछ टटोलती हूँ आज-कल!!
SHILPI.......
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बुधवार, 20 मई 2015
Aurat [औरत]
ऐ मानुस तू किस भ्रम मे है?
किस घनघोर अहम मे है?
क्यो समझता है,तू खुद को सही?
क्यो तेरा फैसला हो सर्वोपरि?
जिसने साथ दिया तेरा हर मोड पर,
जीवन को देखा जिसने तुझसे जोडकर,
हर पल रखा तेरी भावनाओ का ख्याल,
रखा नही तुझसे कोई विरोधाभास,
तेरे दुख मे भी दिया तुझे सुख का आभास,
कभी ना टूटने दिया तेरा आत्मविश्वास,
तुझमे भरा साहस का अम्बार,
तूने किया उसी को निराश..!!
कोई कहता नारी श्रद्धा है,
पर तूने कहा ओ कुलटा है, ओ हीन है,ओ बुद्धिहीन है,
इतना ही नही ओ चरित्रहीन है...!!
जिसने किया तुझ पर सब कुछ अर्पण,
तूने कलंकित किया उसी का दामन...!!
जिसने समझा तुझे अपना अभिमान,
तूने किया उसी का अपमान,
करता रहा उस पर प्रहार पर प्रहार,
तन को ही नही मन को भी पहुचाया तूने आघात...!!
ओ चुप रही कुछ न बोली,रखती रही व्रत-उपवास...!!
अपने रिश्ते का माना तुझको रक्षक पर तू बन गया उसीका भक्षक...!!
ये तूने क्या किया?कैसा ये अन्याय किया?
कैसा तेरा पुरुषत्व है? नारी को समझता एक वस्तु है.!
करके तो देख प्रेम तू उसको,कर देगी ओ परिपूर्ण तुझको...!!
silpi
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015
चुनौती [chunauti]
चुनौतिया जिंदगी की कभी खत्म नही होती
जिंदगी से भाग कर कोई मुश्किल हल नही होती!!
मुश्किले तो आती है जाती है
हर पल जैसे एक जाल बिछाती है
जब लगता है सारी मुश्किले खत्म हो गयी
तभी एक मुश्किल मुस्कुरा कर खडी हो जाती है!!
लगता है ये हमे चिढाती है और कहती है
सब कुछ ठीक हो जाये तो तुम काम क्या करोगे??
जीवन की राह मे नाम क्या करोगे?
लगता है अब सब खत्म हो गया, सारा हौसला जैसे भस्म हो गया
अब क्या होगा? जीवन किस वेग से आगे बढेगा?
तभी हमारा मन ठिठकता है और कहता है,रुक घबरा मत...
इन मुश्किलो को भी तू एक चुनौती दे डाल
खत्म हो जायेगा इनका भी वजूद बस तू जीतने की ठान...
बस तू जीतने की ठान...
जिंदगी से भाग कर कोई मुश्किल हल नही होती!!
मुश्किले तो आती है जाती है
हर पल जैसे एक जाल बिछाती है
जब लगता है सारी मुश्किले खत्म हो गयी
तभी एक मुश्किल मुस्कुरा कर खडी हो जाती है!!
लगता है ये हमे चिढाती है और कहती है
सब कुछ ठीक हो जाये तो तुम काम क्या करोगे??
जीवन की राह मे नाम क्या करोगे?
लगता है अब सब खत्म हो गया, सारा हौसला जैसे भस्म हो गया
अब क्या होगा? जीवन किस वेग से आगे बढेगा?
तभी हमारा मन ठिठकता है और कहता है,रुक घबरा मत...
इन मुश्किलो को भी तू एक चुनौती दे डाल
खत्म हो जायेगा इनका भी वजूद बस तू जीतने की ठान...
बस तू जीतने की ठान...
गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015
अमर प्रेम (Amar prem)
'written by SHILPI
follow on twitter @silpiswati
प्रेम जगत की रीत निराली,थोडी अनोखी थोडी मतवाली,
प्रेम अमिट है,प्रेम अमर है,प्रेम की बोली सबसे प्यारी!!
प्रेम है अर्पण,प्रेम है दर्पण,प्रेम की प्याली अमृत प्याली,
प्रेम दीवानी राधा नाची,मीरा ने पी विष की प्याली!!
प्रेम मे कोई हुआ समर्पण,किसी ने लिखी प्रेम की पाती,
प्रेम की कैसे लिखे परिभाषा,प्रेम ना जाने कोई भाषा!!
अमर प्रेम है निर्मल यमुना,अमर प्रेम की पावन गंगा,
प्रेम की कोई समय न सीमा,प्रेम ना रखे कोई अभिलाषा!!
प्रेम अजर है,प्रेम अमर है,प्रेम है डोरी हर रिश्ते का,
प्रेम तो कर के देखो सबसे,भाव छोड के ऊच-नीच का!!
प्रेम जगत की रीत निराली,थोडी अनोखी थोडी मतवाली,
प्रेम अमिट है,प्रेम अमर है,प्रेम की बोली सबसे प्यारी!!...
......SHILPI
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प्रेम अमिट है,प्रेम अमर है,प्रेम की बोली सबसे प्यारी!!
प्रेम है अर्पण,प्रेम है दर्पण,प्रेम की प्याली अमृत प्याली,
प्रेम दीवानी राधा नाची,मीरा ने पी विष की प्याली!!
प्रेम मे कोई हुआ समर्पण,किसी ने लिखी प्रेम की पाती,
प्रेम की कैसे लिखे परिभाषा,प्रेम ना जाने कोई भाषा!!
अमर प्रेम है निर्मल यमुना,अमर प्रेम की पावन गंगा,
प्रेम की कोई समय न सीमा,प्रेम ना रखे कोई अभिलाषा!!
प्रेम अजर है,प्रेम अमर है,प्रेम है डोरी हर रिश्ते का,
प्रेम तो कर के देखो सबसे,भाव छोड के ऊच-नीच का!!
प्रेम जगत की रीत निराली,थोडी अनोखी थोडी मतवाली,
प्रेम अमिट है,प्रेम अमर है,प्रेम की बोली सबसे प्यारी!!...
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बुधवार, 4 फ़रवरी 2015
मन का नाता
मन से मन का नाता है अटूट,
चाहे कोई पास रहे या रहे दूर
मन जान ही लेता है अपनो के मन की हलचल को,
मन ढूढ ही लेता है गहराई मे छुपे उस दलदल को,
मन मे तो है बाते अनेक........
पर कह दू कैसे ओ बात एक, जो जोड दे अपनो से ओ नाता अटूट
जो नाते गये है बिन बात रूठ,
ओ रूठे है पर मन मे है मर्म, कैसे भरेगे ओ गहरे जख्म?
मन कहता है सब भूल जाओ,ओ कडवी यादे हमको ना सताओ,
जरा याद करो पहले के पल,जब साथ मे थे हम हर पल,
क्यो बिखर गया मन का नाता अटूट?
क्यो मन ही मन सब गये टूट?
आओ जोडे फिर मन की तारो को,
रोशन कर दे मन के उन अंधेरे गलियारे को............
फिर से जोड दे ओ नाता अटूट जो मन ही मन गया था टूट,
मन से मन का नाता है अटूट,
चाहे कोई पास रहे या रहे दूर...........
SHILPI...
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चाहे कोई पास रहे या रहे दूर
मन जान ही लेता है अपनो के मन की हलचल को,
मन ढूढ ही लेता है गहराई मे छुपे उस दलदल को,
मन मे तो है बाते अनेक........
पर कह दू कैसे ओ बात एक, जो जोड दे अपनो से ओ नाता अटूट
जो नाते गये है बिन बात रूठ,
ओ रूठे है पर मन मे है मर्म, कैसे भरेगे ओ गहरे जख्म?
मन कहता है सब भूल जाओ,ओ कडवी यादे हमको ना सताओ,
जरा याद करो पहले के पल,जब साथ मे थे हम हर पल,
क्यो बिखर गया मन का नाता अटूट?
क्यो मन ही मन सब गये टूट?
आओ जोडे फिर मन की तारो को,
रोशन कर दे मन के उन अंधेरे गलियारे को............
फिर से जोड दे ओ नाता अटूट जो मन ही मन गया था टूट,
मन से मन का नाता है अटूट,
चाहे कोई पास रहे या रहे दूर...........
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शनिवार, 31 जनवरी 2015
उडान
written by SHILPI
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अभिलाषा है उडने की.......
उडकर आकाश को छुने की,
दुनिया मुटृठी मे करने की ,
कुछ अपना हासिल करने की,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू चुन एक राह यथार्थ का ,
जो हो तेरे स्वाभिमान का ,
तेरे एक नये पहचान का ,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू क्यो डरी है ?क्यो सहमी है?
किन जंजीरो मे जकडी है?
तोड दे उन बेडियो को,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू द्रृढ हो जा..एक निश्चय कर ले,
मन मे थोडा साहस भर ले
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू रख दे उस धरातल पर कदम,
जो है तेरे सपनो का शहर,
तू पा ही लेगी ओ अपना लक्ष्य,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तुझमे है सच्चाई और लगन,
इच्छाशक्ति भी तेरी लगती है प्रबल,
मन की तू लगती है अडिग ,
होगा तेरा अब पुर्नजन्म ,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
........SHILPI
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अभिलाषा है उडने की.......
उडकर आकाश को छुने की,
दुनिया मुटृठी मे करने की ,
कुछ अपना हासिल करने की,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू चुन एक राह यथार्थ का ,
जो हो तेरे स्वाभिमान का ,
तेरे एक नये पहचान का ,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू क्यो डरी है ?क्यो सहमी है?
किन जंजीरो मे जकडी है?
तोड दे उन बेडियो को,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू द्रृढ हो जा..एक निश्चय कर ले,
मन मे थोडा साहस भर ले
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तू रख दे उस धरातल पर कदम,
जो है तेरे सपनो का शहर,
तू पा ही लेगी ओ अपना लक्ष्य,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
तुझमे है सच्चाई और लगन,
इच्छाशक्ति भी तेरी लगती है प्रबल,
मन की तू लगती है अडिग ,
होगा तेरा अब पुर्नजन्म ,
अन्न्तरमन ने है दी आवाज..
तू भर उडान..तू भर उडान !!
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सोमवार, 19 जनवरी 2015
समय चक्र
written by SHILPI
ये बुरा वक्त भी बीत जायेगा ,
वो अच्छा पल भी आयेगा ,
माना कभी धूप कभी छांंव है जिंदगी ,
उतार - चढाव तो जिंदगी की रीत है..
पर यहॉ जो न फिसले उसी की जीत है !
जीवन तो हंसाता है - रुलाता है,
हर पल को एक सीख बनाता है ,
चाहे कोई कितना भागे इससे..
कोई बच न पाता है!!
राजा हो या रंक हर किसी पर ..
अपना हुक्म चलाता है!!
किसी को देता है सोने की कटोरी मे दूध भात,
किसी को सुखी रोटी को तरसाता है !
किसी की झोली खुशियो से भर देता ..
किसी का दामन एक फूल भी न छू पाता है !
कोई इठलाता अपनी सियासत पर..
कोई अपनी मन की वेदना भी न कह पाता !
ये बुरा वक्त है या बुरी किस्मत ??
या फिर है ये समय चक्र ?
ये समय चक्र भी बीत जायेगा..
पर न जाने कब?????
................शिल्पी
ये बुरा वक्त भी बीत जायेगा ,
वो अच्छा पल भी आयेगा ,
माना कभी धूप कभी छांंव है जिंदगी ,
उतार - चढाव तो जिंदगी की रीत है..
पर यहॉ जो न फिसले उसी की जीत है !
जीवन तो हंसाता है - रुलाता है,
हर पल को एक सीख बनाता है ,
चाहे कोई कितना भागे इससे..
कोई बच न पाता है!!
राजा हो या रंक हर किसी पर ..
अपना हुक्म चलाता है!!
किसी को देता है सोने की कटोरी मे दूध भात,
किसी को सुखी रोटी को तरसाता है !
किसी की झोली खुशियो से भर देता ..
किसी का दामन एक फूल भी न छू पाता है !
कोई इठलाता अपनी सियासत पर..
कोई अपनी मन की वेदना भी न कह पाता !
ये बुरा वक्त है या बुरी किस्मत ??
या फिर है ये समय चक्र ?
ये समय चक्र भी बीत जायेगा..
पर न जाने कब?????
................शिल्पी
रविवार, 18 जनवरी 2015
जीवन की कसमकस
एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ,
कभी चित्त मे उथल - पुथल सी ;
कभी है ये गम्भीर नदी सी ,
कभी है अल्हड यौवन जैसी ,
कभी है नट्खट बचपन जैसी ,
जितना टटोली उतना ही उलझी,
पर रही मै सदा निरुत्तर,
कैसी है ये जीवन विड्म्बना
अधरो पर ये कैसी विवेचना,
कह भी न पाऊ,रह भी न पाऊ ,
अन्तरमन मे द्व्दं मची है,
इसको कैसे शांत करु मै?
एक बात मै समझ न पाती ,
दुर्लभ है जीवन या सुख की शैय्या ........
SHILPI....
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